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Paddy crop

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

खेती किसानी में बहुत से आतंरिक और बाहरी कारक फसलीय उत्पादन को प्रभावित करते हैं। इनमें से एक प्रमुख कारक फसल बुवाई के समय का चयन करना है। 

किसान भाइयों को बेहतर उपज हांसिल करने के लिए हर एक माह के मुताबिक फसलों की बुवाई और कृषि कार्य करना चाहिए। साथ ही, फसल की बुवाई के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए, 

ताकि बंपर उत्पादन हांसिल किया जा सके। ऐसे में कृषकों के पास प्रति महीने कृषि कार्यों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि ज्यादा उपज के साथ उच्च गुणवत्ता प्राप्त हो सके।

भारत में मौसम के आधार पर भिन्न-भिन्न फसलों की खेती की जाती है। इसी प्रकार प्रत्येक महीने मौसम को मद्देनजर रखते हुए अलग-अलग कृषि कार्य भी किया जाता है, ताकि फसलों की सही ढ़ंग से देखभाल की जा सके। 

इससे फसल की अच्छी-खासी वृद्धि होती है। साथ ही, उपज की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। ऐसे में आवश्यक है, कि कृषकों को मौसम के आधार पर किए जाने वाले कृषि कार्यों की सटीक जानकारी होनी चाहिए।

धान की नर्सरी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

यदि किसान भाई मई के अंतिम सप्ताह में धान की नर्सरी नहीं लगा पाए हैं, तो जून के प्रथम सप्ताह तक यह कार्य पूर्ण कर लें। वहीं, सुगंधित किस्मों की नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह तक लगा लें। 

धान की मध्यम और देरी से पकने वाली किस्मों को काफी अच्छा माना गया है। इसमें स्वर्ण, पंत-10, सरजू-52, नरेन्द्र-359, जबकि टा.-3, पूसा बासमती-1, हरियाणा बासमती सुगंधित एवं पंत संकर धान-1 तथा नरेन्द्र संकर धान-2 प्रमुख उन्नत संकर किस्में हैं। 

धान की बारीक किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर बीज दर 30 किलोग्राम, मध्यम धान के लिए 35 किलोग्राम, मोटे धान के लिए 40 किलोग्राम और बंजर भूमि के लिए 60 किलोग्राम, जबकि संकर किस्मों के लिए 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। 

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अगर नर्सरी में खैरा रोग नजर आए तो 20 ग्राम यूरिया, 5 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 वर्ग मीटर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए।

मक्का की जून में बुवाई से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी   

जून में मक्का की खेती से किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए अगर आप मक्का की बुवाई करना चाहते हैं, तो इसकी बुवाई 25 जून तक कर लेनी चाहिए। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो इसकी बुवाई 15 जून तक भी की जा सकती है। 

मक्का की उन्नत किस्मों में शक्तिमान-1, एच.क्यू.पी.एम.-1, तरुण, नवीन, कंचन, श्वेता और जौनपुरी की सफेद और मेरठ की पीली स्थानीय किस्में अच्छी मानी जाती हैं।

किसान पशु चारा की फसलों की बुवाई करें  

पशुओं के लिए हरे चारे का अभाव ना हो इसलिए आप इस महीने में ज्वार, लोबिया और चरी जैसे चारे वाली फसलों की बुवाई कर सकते हैं। बारिश न होने की स्थिति में खाद देकर बुवाई की जा सकती है। 

जून के महीने में किसान इन सब्जियों की खेती करें

जून के महीने में आप बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की रोपाई कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त लौकी, खीरा, चिकनी तोरी, सावन तोरी, करेला और टिंडा की बुवाई भी इसी माह की जा सकती है। 

भिंडी की उन्नत किस्मों में परभणी क्रांति, आजाद भिंडी, अर्का अनामिका, वर्षा, उपहार, वी.आर.ओ.-5, वी.आर.ओ.-6 और आईआईवीआर-10 अच्छी मानी जाती है।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

धान की खेती भारत में खरीफ के मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है। भारत में धान की बुवाई बड़े क्षेत्र में की जाती है। अन्य देशों में धान की उपज में वृद्धि हो रही है जो की हमरे देश में बहुत कम है। 


धान की उपज कई कारकों से प्रभावित होती है जिन में से सबसे बाद कारक है इसमें लगने वाले खतरनाक रोग, फसल में रोगों के प्रभाव के कारण उपज आधी से भी कम होती है। 


इसलिए आज के इस लेख में हम आपके लिए धान के रोगों से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी लेके आए है, जिससे की आप समय रहते इन रोगों को पहचान कर इनका उपचार कर सकते है।

 

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण 

भूरा धब्बा रोग

ये रोग हेलमिनथोस्पोरियम ओरायजी जीवाणु के कारण होता है जो की फसल की उपज को बहुत प्रभावित करता है। इस रोग के लक्षण पौधे के सभी ऊपरी भागो पर देखने को मिलते है । 


तनों पत्तियों एवं बालियों पर बहुत सारे अण्डाकार स्लेटी धब्बे दिखाई देते है जो बाद में भूरे हो जाते है। इस रोग में आपस में धब्बे मिलकर बड़े धब्बे बना लेते है। रोग का अधिक प्रकोप होने पर पौधे उकठकर मर जाते है। 


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पौधे के विकास के साथ में बालियों का विकास भी रूक जाता है और बालियों में दाने नहीं बनते है। फसल की किसी भी अवस्था में यह रोग हो सकता है। रोग से प्रभावित पौधों में दाने की गुणवत्ता कम हो जाती है जिससे फसल का रेट भी अच्छा नहीं लगता है।     


भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण के उपाय         

  • इस रोग की जड़ को ख़तम करने के लिए केवल प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।  
  • खेत में पूर्स्च्छ खेती करें।
  • फसल चक्र अपनाए।  
  • रोपण की तिथि में बदलाव करें।  
  • उचित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करें।      
  • उपयुक्त जल प्रबंधन करें।      
  • पोटाश की कमी की पूर्ति के लिए पोटाश युक्त उर्वरकों का उपयोग करें।
  • भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण के थाईरम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें या कार्बेंडाजिम 1.5 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें।                               
  • मेनेकोजेब 0.25 प्रतिशत की दर से 10 से 15 दिन के अंतराल में लक्षण दिखते ही छिड़काव करें।                      

बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट (जेन्थोमोनस केम्पेस्ट्रिस)

बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग को हिंदी में जेन्थोमोनस केम्पेस्ट्रिस रोग के नाम से जाना जाता है जो की जेन्थोमोनस केम्पेस्ट्रिस जीवाणु के कारण होता है। इस रोग में पत्तियों पर पानीदार धब्बे बनते है। 

धब्बों के आसपास चिपचिपी बूंदे जमा होती है। रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियां पीला से नांरगी भूरी हो जाती है। छोटे धब्बे मिलकर पत्तियों की सतह पर बड़े धब्बे बन जाते है। ये रोग फसल को विकराल रूप में प्रभावित करता है। 

बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग के लक्षण दो भागों में दिखाई देते है। क्रेसिक फेस और ब्लाइट फेस इन दोनों में लक्षण अलग अलग होते है। क्रेसिक भाग पौधे की प्रांरभिक अवस्था में मुरझााकर सुख जाते है। 

बाद की अवस्था में ब्लाइट फेस के लक्षण दिखते है जो पत्ती के ऊपर और किनारे में दिखाई पड़ते है, ये धीरे धीरे बढ़कर बड़े एवं लम्बे धब्बे बन जाते है। जैसे - जैसे रोग आगे बढ़ता है, जल्दी ही धब्बे पीले से सफेद हो जाते है।         

बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग के नियंत्रण के उपाय        

  • सबसे पहले बुवाई के लिए रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें इससे ही इस रोग का रोकथाम किया जा सकता है। 
  • इस रोग को खड़ी फसल में नियंत्रित करने के लिए 5 ग्राम स्ट्रेपटोसाइक्लीन 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से रोग की शुरूवात में छिड़काव करें। 
  • अच्छा नियंत्रण प्राप्त करने के लिए बाद में 09-12 दिन के अंतराल से छिड़काव फिर से दोहराए।

खैरा रोग 

धान की फसल में ये रोग भी बहुत नुकसान करता है जिस कारण से फसल की उपज की  कम हो जाती है। इस रोग की क्षति की बात करे तो ये रोग मुख्य रूप से  जस्ते की कमी से होता है। 


इस रोग के लक्षण नर्सरी में ही दिखाई देने लग जाते है। इस रोग के सबसे पहले लक्षण नर्सरी में पौधे का पीला पड़ना है। रोग से संक्रमित पौधे पर पत्तों के बीच वाली शिरा के पास पीलापन दिखाई देता है। जिससे की पौधों की बढ़वार रूक जाती है। संक्रमण अधिक होने पर पौधे सुख जाते है।    


खैरा रोग के नियंत्रण के उपाय  

  • नर्सरी के पौधों को बोने से पहले 1 से 2 मिनट तक जिंक सल्फेट के 0.2 प्रतिशत घोल में भिगाए।
  • रोग की रोकथाम के लिए  बीज को बोने से पहले रात भर जिंक सल्फेट के 0.4 प्रतिशत घोल में भिगाए। या जिंक सल्फेट 5 कि.ग्रा. और चूना 2.5 कि.ग्रा. का छिड़काव करें।   
  • जिंक सल्फेट 5 कि.ग्रा. और चूना 2.5 कि.ग्रा. का पहला छिड़काव नर्सरी में बोने के 10 दिन बाद करें।दूसरा छिड़काव बोनी के 20 दिन बाद करे और
  • तीसरा छिड़काव रोपणी के 15 से 30 दिन बाद करें।

फाल्स स्मट या आभासी कंडवा रोग 

ये रोग यूसलीगनीओइड विरेन्स जीवाणु से होता है। धान की फसल का ये सबसे घातक रोग माना जाता है। रोग फूल आने के बाद में दिखता है। इस रोग में बालियों में दाने हरे काले हो जाते है। 


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संक्रमित दाने छिद्र युक्त चुर्ण से ढके रहते है। हवा से उड़कर यह स्वस्थ फूलों को भी संक्रमित कर देते है। अधिक संक्रमण होने पर सारे दाने खराब हो जाते है। 


फाल्स स्मट या आभासी कंडवा रोग के नियंत्रण के उपाय     

  • इस रोग को पूरी तरह से नियंत्रित करने के लिए दो से तीन साल के लिए फसल चक्र अपनाए।          
  • गहरी जुताई से भूमि में गिरे स्केलोरेशिया नष्ट हो जाते है।
  • संक्रमित दाने एवं पौधों को नष्ट करें, संक्रमित पौधों से बीज न इकटठा करें।    
  • प्रोपेकोनोज़ोल ( टिल्ट) 1 मि.ली. प्रति लीटर या क्लोरोथोलोनिल 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से फूल निकलने समय छिड़काव करें।
  • दूसरा छिड़काव फूल पूरी तरह से आने के बाद करें।
  • पोटाश उर्वरकों को डाले। 

जानिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में

जानिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में

भारत धान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। खरीफ के सीजन में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इस सीजन में वायुमंडल में आर्दरता होने के कारण फसल पर रोगों का प्रकोप भी बहुत होता है। 

धान की फसल कई रोगों से ग्रषित होती है जिससे पैदावार में बहुत कमी आती है। मेरी खेती के इस लेख में आज हम आपको धान के प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में विस्तार से बताएंगे।  

धान के प्रमुख रोग और इनका उपचार   

  1. धान का झोंका (ब्लास्ट रोग) 

  • धान का यह रोग पाइरिकुलेरिया ओराइजी नामक कवक द्वारा फैलता है। 
  • धान का यह ब्लास्ट रोग अत्यंत विनाशकारी होता है।
  • पत्तियों और उनके निचले भागों पर छोटे और नीले धब्बें बनते है, और बाद मे आकार मे बढ़कर ये धब्बें नाव की तरह हो जाते है।
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उपचार 

  • रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बोने से पहले बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।
  • खड़ी फसल मे रोग नियंत्रण के लिए  100 ग्राम Bavistin +500 ग्राम इण्डोफिल M -45 को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • बीम नामक दवा की 300 मिली ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
  1. जीवाणुज पर्ण झुलसा रोग यानी की (Bacterial Leaf Blight)

लक्षण 

  • ये मुख्य रूप से यह पत्तियों का रोग है। यह रोग कुल दो अवस्थाओं मे होता है, पर्ण झुलसा अवस्था एवं क्रेसेक अवस्था। 
  • सर्वप्रथम पत्तियों के ऊपरी सिरे पर हरे-पीले जलधारित धब्बों के रूप मे रोग उभरता है।
  • धीरे-धीरे पूरी पत्ती पुआल के रंग मे बदल जाती है। 
  • ये धारियां शिराओं से घिरी रहती है, और पीली या नारंगी कत्थई रंग की हो जाती है।
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उपचार 

  • रोग के नियंत्रण के लिए एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या 5 ग्राम एग्रीमाइसीन में बीज को बोने से पहले 12 घंटे तक डुबो लें।
  • बीजो को स्थूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित कर लगावें।
  • खड़ी फसल मे रोग दिखने पर ब्लाइटाक्स-50 की 2.5 किलोग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 50 ग्राम दवा 80-100 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।    
  1. पर्ण झुलसा पर्ण झुलसा

भारत के धान विकसित क्षेत्रों मे यह एक प्रमुख रोग बनकर सामने आया है। ये रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूँदी के कारण होता है, जिसे हम थेनेटीफोरस कुकुमेरिस के नाम से भी जानते है। 

पानी की सतह से ठीक ऊपर पौधें के आवरण पर फफूँद अण्डाकार जैसा हरापन लिए हुए स्लेट/उजला धब्बा पैदा करती है।

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इस रोग के लक्षण मुख्यत पत्तियों एवं पर्णच्छद पर दिखाई पड़ते है। अनुकूल परिस्थितियों मे फफूँद छोटे-छोटे भूरे काले रंग के दाने पत्तियों की सतह पर पैदा करते है, जिन्हे स्कलेरोपियम कहते है। 

ये स्कलेरोसीया  हल्का झटका लगने पर नीचे गिर जाता है। सभी पत्तियाँ आक्रांत हो जाती है जिस कारण से पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है, और आवरण से बालियाँ बाहर नही निकल पाती है। बालियों के दाने भी पिचक जाते है। 

वातावरण मे आर्द्रता अधिक तथा उचित तापक्रम रहने पर, कवक जाल तथा मसूर के दानों के तरह स्कलेरोशियम दिखाई पड़ते है। रोग के लक्षण कल्लें बनने की अंतिम अवस्था मे प्रकट होते है। 

लीफ शीथ पर जल सतह के ऊपर से धब्बे बनने शुरू होते है। पौधों मे इस रोग की वजह से उपज मे 50% तक का नुकसान हो सकता है।

 उपचार 

धान के बीज को स्थूडोमोनारन फ्लोरेसेन्स की 1 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुआई करें। 

जेकेस्टीन या बेविस्टीन 2 किलोग्राम या इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। खड़ी फसल मे रोग के लक्षण दिखाई देते ही भेलीडा- माइसिन कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या प्रोपीकोनालोल 1 ML का 1.5-2 मिली प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।

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  1. धान का भूरी चित्ती रोग (Brown Spot)

धान का यह रोग देश के लगभग सभी हिस्सों मे देखा जा सकता है। यह एक बीजजनित रोग है। यह रोग हेल्मिन्थो स्पोरियम औराइजी नामक कवक द्वारा होता है।    

ये रोग फसल को नर्सरी से लेकर दाने बनने तक प्रभावित करता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर गोलाकार भूरे रंग के धब्बें बन जाते है।  इस रोग के कारण पत्तियों पर तिल के आकार के भूरे रंग के काले धब्बें बन जाते है। 

ये धब्बें आकार एवं माप मे बहुत छोटी बिंदी से लेकर गोल आकार के होते है। धब्बों के चारो ओर हल्की पीली आभा बनती है। ये रोग पौधे के सारे ऊपरी भागों को प्रभावित करता है।

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उपचार 

रोग दिखाई देने पर मैंकोजेब के 0.25 प्रतिशत घोल के 2-3 छिड़काव 10-12 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए। खड़ी फसल में इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी मे घोल कर प्रति एकेड की दर से छिड़काव 15 दिनों के अन्तर पर करें।  

इस लेख में आपने धान के प्रमुख रोगों और इनकी रोकथाम के बारे में जाना। मेरीखेती आपको खेतीबाड़ी और ट्रैक्टर मशीनरी से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्रोवाइड करवाती है। अगर आप खेतीबाड़ी से जुड़ी वीडियोस देखना चाहते हो तो हमारे यूट्यूब चैनल मेरी खेती पर जा के देख सकते है।  

खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा

खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा

धान की रोपाई के पश्चात फसल को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। इस वजह से उर्वरक, खाद एवं सिंचाई के साथ दूसरे प्रबंधन कार्य ठीक तरह से कर लेने चाहिये। खरीफ सीजन में भारत के अधिकांश किसान अपने खेतों में धान की फसल लगाते हैं। चावल का बेहतरीन उत्पादन पाने के लिये आरंभ से अंत तक प्रत्येक कार्य सावधानी पूर्वक किया जाता है। परंतु, इतने परिश्रम के बावजूद धान के कल्ले निकलते वक्त विभिन्न समस्याऐं सामने आती हैं। धान की फसल के लिये यह सबसे आवश्यक समय होता है। इस वजह से आवश्यक है, कि उर्वरक, खाद एवं सिंचाई सहित दूसरे प्रबंधन कार्य सही तरह करके धान का अच्छा उत्पादन अर्जित किया जाये। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, रोपाई के उपरांत फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। इस दौरान कीड़े एवं रोगों का नियंत्रण तो करना ही है। साथ ही, उत्पादन बढ़ाने वाले वैज्ञानिक नुस्खों पर कार्य करना फायदेमंद माना जाता है।

खेत से जलभराव की समुचित निकासी का प्रबंध करें

यदि फसल में अधिक जलभराव की स्थिति है, तो जल निकासी करके अतिरिक्त जल को खेत से बाहर निकाल दें। उसके बाद में हल्की सिंचाई का काम करते रहें, जिससे मृदा फटने की दिक्कत न हो सके। यह कार्य इस वजह से जरूरी है, कि फसल की जड़ों तक सौर ऊर्जा पहुंच सके। साथ ही, फसल में ऑक्सीजन की सप्लाई भी होती रहे। यह कार्य रोपाई के 25 दिन उपरांत ही कर लेना चाहिए, जिससे कि समय रहते पोषण प्रबंधन किया जा सके।

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धान की फसल की बढ़वार के लिए समय पर पोषण की आवश्यकता होती है

धान की रोपाई के 25-50 दिन के दरमियान धान की फसल में कल्ले निकलने शुरू हो जाते हैं। ये वही वक्त है जब धान के पौधों को सबसे ज्यादा पोषण की आवश्यकता होती है। इस दौरान धान के खेत में एक एकड़ के हिसाब से 20 किलो नाइट्रोजन एवं 10 किलो जिंक का मिश्रण तैयार कर फसल पर छिड़क देना चाहिये। कृषक भाई यदि चाहें तो अजोला की खाद भी फसल में डाल सकते हैं।

फसलीय विकास एवं उत्तम पैदावार हेतु निराई-गुड़ाई

फसल का विकास और बेहतरीन उत्पादन के लिये धान के खेत में निराई-गुड़ाई का कार्य भी करते रहें। इससे फसल में लगने वाली बीमारियां एवं कीड़ों के प्रकोप का पता लग जाता है। निराई-गुड़ाई करने से जड़ों में आक्सीजन का प्रभाव होता है और पौधों के विकास में सहयोग मिलता है। कृषक भाई चाहें तो फसल पर उल्टी एवं सीधी दिशा में बांस से पाटा लगा सकते हैं, जिससे जड़ों में खिंचाव होने लगता है। साथ ही, बढ़वार भी काफी तेजी से होने लगती है।

धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण

अक्सर धान के खेत में गैर जरूरी पौधे उग जाते हैं, जो धान से पोषण सोखकर फसल की उन्नति से रोकते हैं, इन्हें खरपतवार कहते हैं। खरपतवार को नष्ट करने हेतु 2-4D नामक खरपतवार नाशी दवा का स्प्रे करें। पेंडीमेथलीन 30 ई.सी भी एक प्रमुख खरपतवार नाशी दवा है, जिसकी 3.5 लीटर मात्रा को 850-900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के मुताबिक खेतों में डाल देना चाहिये।

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जैविक खाद का इस्तेमाल धान की फसल में किया जाता है

प्राचीन काल से ही धान की फसल से बेहतरीन उत्पादन लेने के लिये जैविक विधि अपनाने का सलाह मशवरा दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, धान एंजाइम गोल्ड का उपयोग करके बेहद लाभ उठा सकते हैं। बतादें, कि धान एंजाइम गोल्ड को समुद्री घास से निकाला जाता है। जो धान की बढ़वार और विकास में सहयोग करता है। यह ठीक अजोला की भांति कार्य करता है, जिससे कीड़ों एवं रोगों की संभावना भी कम हो जाती है। इसके छिड़काव के लिये एक मिली. धान एंजाइम गोल्ड को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनायें। साथ ही, एक हेक्टेयर खेत में इसकी 500 लीटर मात्रा का इस्तेमाल करें।
धान की फसल के अंतर्गत बालियां बढ़ाने के लिए दवा एवं तकनीक का इस प्रकार उपयोग करें

धान की फसल के अंतर्गत बालियां बढ़ाने के लिए दवा एवं तकनीक का इस प्रकार उपयोग करें

धान की फसल खरीफ सीजन की एक महत्वपूर्ण फसल है। धान की बालियां बढ़ाने की किसान हर संभव कोशिश करते हैं। इसलिए आज हम आपको इस लेख में इसके लिए दवा व तकनीक की जानकारी देने वाले हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि धान खरीफ सीजन की सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है। हमारे देश के किसान भाइयों के द्वारा धान की फसल सबसे ज्यादा मात्रा में की जाती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, चीन के पश्चात भारत में धान का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है। इसी के चलते भारत धान उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर बना हुआ है।

उत्पादन हेतु नवीन तकनीक का इस्तेमाल

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारतीय किसानों के द्वारा धान की बेहतरीन पैदावार अर्जित करने के लिए नई तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इसके लिए वह कृषि वैज्ञानिकों की सहायता लेते हैं। यदि आप धान के ज्यादा मात्रा में कल्ले अर्जित करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कुछ तकनीकों के साथ दवाओं का भी उपयोग करना होगा। परंतु, आपको इस बात का भी ख्याल रखना है, कि आज के वक्त में बाजार में विभिन्न प्रकार की नकली औषधियां आ रही हैं, जिससे फसल पूर्णतय चौपट हो जाती है।

कल्ले फूटने के दौरान फसल को न्यूट्रीशन यानी पोषण की आवश्यकता पड़ती है

यदि आप कृषक हैं, तो इस बात से तो अच्छे से परिचित होंगे कि धान की रोपाई करने के पश्चात उसमें 20-30 दिन के अंदर कल्ले फूटने चालू हो जाते हैं। इस दौरान फसल को ज्यादा मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ध्यान रखें की इस दौरान आप फसल में अधिक पानी को न रखें। साथ ही, प्रति एकड़ 20 किलो नाइट्रोजन एवं 10 किलो जिंक की मात्रा डालें।

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धान में रोपाई के 10-15 दिन के बाद पाटा लगा दें

जब आप खेत में धान की रोपाई कर लें, तो आप कम से कम 10-15 दिनों के उपरांत ही इसमें पाटा लगादें। ऐसा करने से छोटी व हल्की जड़ें तीव्रता के साथ विकसित होना शुरू हो जाती है। जब आप खेत के अंदर एक बार पाटा लगा दें, तो फिर दूसरी बार विपरीत दिशा में पाटा लगाएं। ऐसा करने से पौधे में लगने वाले सुंडी कीड़े मर जाते हैं। साथ ही, बाकी विभिन्न प्रकार के रोग लगने की आशंका नहीं होती है।

धान के कल्ले बढ़ाने वाली औषधियां

धान की बाली ज्यादा बढ़ाने के लिए आपको समयानुसार खरपतवारनाशी और निराई-गुड़ाई का कार्य करते रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त आप बाजार में मिलने वाली कुछ दवाओं का उपयोग कर सकते हैं। जैसे कि - खरपतवार के लिए 2-4D, फसल रोपाई के लिए 3-4 दिन में पेंडीमेखली 30 ई.सी 3.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से दें। इस दवा में आप 800-900 लीटर पानी को मिश्रित कर खेत में छिड़काव कर सकते हैं।